'ऑपरेशन महादेव' की गूंज: 96 दिन बाद दहशतगर्दों की कब्रगाह बना पहलगाम

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था. 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत के बाद देशभर में आक्रोश
जब घाटी में हर नुक्कड़ पर तलाशी अभियान चल रहा था, तब ये दहशतगर्द 96 दिनों तक कैसे छुपे रहे?
चाइनीज अल्ट्रा रेडियो सिस्टम से मिली पहली सुराग, हाईटेक तकनीक बनी आतंकियों की आखिरी भूल, लश्कर का कमांडर हाशिम मूसा ढेर



हमले के बाद गश्त तेज, लेकिन कोई सुराग नहीं

तकनीक बनी आतंकियों की कमजोरी

क्या है चाइनीज अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम?

ऑपरेशन 'महादेव': सटीकता और धैर्य का संयोजन

छह घंटे की मुठभेड़, आतंक की कब्रगाह

सिर्फ एक तकनीकी गलती बनी जानलेवा

1. ‘96 दिन की छुपम-छुपाई खत्म’: ऑपरेशन महादेव में मारा गया लश्कर का टॉप कमांडर


2. चीन की तकनीक बनी भारत की ताकत: कैसे टूटी 96 दिन की आतंकी चुप्पी?


3. पहाड़ों में छिपे थे दहशतगर्द, ‘ऑपरेशन महादेव’ ने किया खात्मा


4. पहलगाम हमले का बदला: एक गलती ने आतंकियों को पहुंचाया अंजाम तक


5. लश्कर का अंत: चाइनीज रेडियो सिस्टम से मिली लोकेशन, ऑपरेशन महादेव सफल

अब जवाब मिला है- एक चाइनीज अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम की वजह से. आतंकियों की इसी एक तकनीकी चूक ने 'ऑपरेशन महादेव' को मुमकिन बना दिया, जिसमें न सिर्फ लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को ढेर किया गया, बल्कि उनका शीर्ष कमांडर हाशिम मूसा भी मारा गया.

तो आइए विस्तार से समझते हैं कि ऑपरेशन 'महादेव' कैसे परवान चढ़ा, चाइनीज तकनीक कैसे आतंकियों की कमजोरी बन गई और आखिर 96 दिन बाद कैसे टूटी उनकी 'छिपने की दीवार'.

हमले के बाद गश्त तेज, लेकिन कोई सुराग नहीं

18 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद घाटी में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया था. हर चेकपॉइंट पर सख्त निगरानी, गश्त तेज और सैकड़ों किलोमीटर में फैले जंगलों की गहन तलाश लेकिन कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लग रहा था. सुरक्षा एजेंसियों को भी लगने लगा था कि आतंकी किसी स्थानीय मदद से बेहद सुनियोजित तरीके से छिपे हुए हैं.

तकनीक बनी आतंकियों की कमजोरी

सुरक्षा एजेंसियों ने तलाश को व्यापक और तकनीकी रूप देना शुरू किया. थर्मल इमेजिंग ड्रोन्स, ह्यूमन इंटेलिजेंस (HUMINT), सैटेलाइट ट्रैकिंग और सिग्नल इंटरसेप्शन तकनीक के जरिए पूरे दक्षिणी कश्मीर को खंगाला गया. इसी दौरान एक ऐसा संकेत मिला, जिसने पूरा खेल बदल दिया.

जंगल के एक घने इलाके में एक चाइनीज अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम का एक्टिव होना नोट किया गया. यह सिस्टम बहुत कम इस्तेमाल होता है, और इसकी पहचान तभी होती है जब कोई लगातार सुरक्षित फ्रीक्वेंसी पर डेटा ट्रांसमिट करता है. यहीं से सुरक्षाबलों को पहली पुख्ता जानकारी मिली कि आतंकी अब भी आसपास ही कहीं छिपे हैं.

क्या है चाइनीज अल्ट्रा रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम?

यह सिस्टम चीन की एक सैन्य-उपयोगी तकनीक है, जिसे हाई फ्रिक्वेंसी (HF) और अल्ट्रा हाई फ्रिक्वेंसी (UHF) बैंड्स पर काम करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसमें मजबूत एनक्रिप्शन होता है और यह दुर्गम पहाड़ी इलाकों में भी संचार की सुविधा देता है.

साल 2016 में इसे आतंकियों द्वारा 'WY SMS' के नाम से इस्तेमाल किया गया था और यह लश्कर, जैश जैसे संगठनों के लिए एक सुरक्षित माध्यम बन गया था. इसका सबसे खतरनाक पहलू ये है कि इसके सिग्नल्स को इंटरसेप्ट करना या ब्लॉक करना बेहद मुश्किल होता है. यही वजह थी कि यह तकनीक लंबे समय तक सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से दूर रही.

ऑपरेशन 'महादेव': सटीकता और धैर्य का संयोजन

जैसे ही अल्ट्रा रेडियो के संकेत मिले, सेना और खुफिया एजेंसियों ने तत्काल 'ऑपरेशन महादेव' की योजना बनाई. इस ऑपरेशन का नाम उस पहाड़ी से लिया गया जहां आतंकी छिपे हुए थे - माउंट महादेव.

28 जुलाई की सुबह पहली किरणों के साथ, सुरक्षाबलों ने इलाके को घेरना शुरू किया. भारतीय सेना, राष्ट्रीय राइफल्स, और जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष दस्ते इस संयुक्त अभियान का हिस्सा थे.

छह घंटे की मुठभेड़, आतंक की कब्रगाह

मुठभेड़ करीब छह घंटे तक चली. आतंकियों के पास से भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद हुए, जिनमें AK-47 राइफलें, ग्रेनेड, IED और पहलगाम हमले में प्रयुक्त गोला-बारूद शामिल था. इस एनकाउंटर में लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर हाशिम मूसा भी मारा गया, जो पिछले तीन वर्षों से भारत में कई आतंकी घटनाओं का मास्टरमाइंड था.

सिर्फ एक तकनीकी गलती बनी जानलेवा

जानकारों का कहना है कि आतंकियों को अपनी लोकेशन उजागर होने की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी. उनका भरोसा इस तकनीक पर इतना था कि उन्होंने इसके एनक्रिप्टेड सिग्नल को पूरी तरह सुरक्षित मान लिया था. लेकिन यही तकनीक उनकी अंतिम भूल साबित हुई.

96 दिन तक कैसे बचते रहे आतंकी?

इस ऑपरेशन की सफलता जितनी बड़ी है, उतने ही बड़े कुछ सवाल भी छोड़ गई है:

क्या आतंकियों को स्थानीय मदद मिल रही थी?
क्या घाटी में ऐसे रेडियो सिस्टम पहले भी एक्टिव रहे हैं?
क्या चीन की ये तकनीक आतंकी संगठनों तक नियमित तौर पर पहुंच रही है?
इन सवालों के जवाब सुरक्षा एजेंसियां आने वाले दिनों में तलाशेंगी, लेकिन इतना तय है कि 'ऑपरेशन महादेव' ने यह दिखा दिया है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि आतंक को जड़ से खत्म करने की रणनीति पर काम करता है.

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था. 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत के बाद देशभर में आक्रोश था और सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ा सवाल यही था, इतने भारी सुरक्षा इंतज़ामों के बावजूद आतंकी आखिर कहां छिपे हैं? जब घाटी में हर नुक्कड़ पर तलाशी अभियान चल रहा था, तब ये दहशतगर्द 96 दिनों तक कैसे छुपे रहे?

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